पर्यावरणीय प्रबंधन (Management of Natural Resources)

 


 पर्यावरणीय प्रबंधन (Management of Natural Resources)


 

प्रस्तावना

पर्यावरण हमारे जीवन का आधार है। इसमें वायु, जल, मिट्टी, पेड़-पौधे, जानवर और अन्य सभी प्राकृतिक संसाधन शामिल हैं। इन संसाधनों के बिना जीवन असंभव है। लेकिन बढ़ती जनसंख्या, अनियंत्रित विकास, और उपभोक्तावादी संस्कृति के कारण प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव बढ़ता जा रहा है। इस स्थिति में पर्यावरणीय प्रबंधन न केवल ज़रूरी, बल्कि अनिवार्य हो गया है।

पर्यावरणीय प्रबंधन का अर्थ है प्राकृतिक संसाधनों का इस तरह से उपयोग और संरक्षण करना कि वे लंबे समय तक उपलब्ध रहें और पर्यावरण संतुलन भी बना रहे।


 

 

 

 

 

 

 


पर्यावरणीय प्रबंधन का उद्देश्य


 

    1. संसाधनों का सतत उपयोग:

इस तरह से उपयोग कि भविष्य की पीढ़ियाँ भी उन्हें इस्तेमाल कर सकें।

    2. प्रदूषण नियंत्रण:

जल, वायु, और भूमि प्रदूषण को रोकना या कम करना।

    3. जैव विविधता का संरक्षण:

प्रजातियों, पारिस्थितिक तंत्रों और जैव विविधता की रक्षा।

    4. पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखना:

प्राकृतिक चक्र जैसे जल चक्र, कार्बन चक्र, नाइट्रोजन चक्र को बनाए रखना।

    5. स्थानीय समुदायों को शामिल करना:

संरक्षण कार्यों में जनभागीदारी बढ़ाना।


 

 

 

 

 

 

 


प्राकृतिक संसाधनों के प्रकार


 

1. अक्षय संसाधन (Renewable Resources):

जैसे सूर्य की ऊर्जा, पवन, जल, वन, कृषि भूमि। ये समय के साथ पुनः उत्पन्न हो सकते हैं, लेकिन अगर इनका अत्यधिक दोहन किया जाए तो यह भी समाप्त हो सकते हैं।

2. अनवनीय संसाधन (Non-Renewable Resources):

जैसे कोयला, पेट्रोलियम, खनिज। इनका पुनर्निर्माण लाखों वर्षों में होता है, इसलिए इनका विवेकपूर्ण उपयोग ज़रूरी है।


 

 

 

 

 

 

 


मुख्य पर्यावरणीय समस्याएँ


 

1.  वनों की कटाई:

जैव विविधता नष्ट होती है, मिट्टी की गुणवत्ता घटती है और वर्षा चक्र प्रभावित होता है।

2. जल संकट:

भूमिगत जलस्तर गिर रहा है और नदियाँ सूख रही हैं।

3. वायु प्रदूषण:

वाहनों, उद्योगों और जलाने की क्रियाओं से वायु जहरीली हो रही है।

4. भूमि क्षरण:

रासायनिक खाद, कीटनाशकों और अत्यधिक दोहन से भूमि की उर्वरता खत्म हो रही है।

5. कचरा प्रबंधन:

प्लास्टिक और अन्य गैर-बायोडिग्रेडेबल कचरे की भरमार से पर्यावरण दूषित हो रहा है।


 

 

 

 

 

 

 


पर्यावरणीय प्रबंधन के प्रमुख क्षेत्र


 

1.  जल संसाधन प्रबंधन:

o    वर्षा जल संचयन (Rainwater Harvesting)

o    नदियों की सफाई और संरक्षण (जैसे नमामि गंगे योजना)

o    सिंचाई में जल की बचत (ड्रिप इरिगेशन, स्प्रिंकलर सिस्टम)

 

2. वन प्रबंधन:

o    वृक्षारोपण अभियान

o    वन्य जीव संरक्षण

o    सामुदायिक वानिकी (Joint Forest Management)

 

3. ऊर्जा प्रबंधन:

o    नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग (सौर, पवन, बायोगैस)

o    ऊर्जा दक्षता बढ़ाना (LED, ऊर्जा कुशल उपकरण)

 

4. कचरा प्रबंधन:

o    कचरे का पृथक्करण (सूखा और गीला)

o    पुनर्चक्रण (Recycling)

o    जैविक कचरे से खाद बनाना (Composting)

 

5. भूमि और कृषि प्रबंधन:

o    जैविक खेती

o    बहुफसली प्रणाली

o    मिट्टी परीक्षण और संरक्षण


 

 

 

 

 

 

 


भारत में पर्यावरणीय प्रबंधन से जुड़े प्रयास


 

1.  संवैधानिक प्रावधान:

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 48A और 51A(g) पर्यावरण की रक्षा को राज्य और नागरिकों का कर्तव्य बनाते हैं।

2. प्रमुख कानून:

o    पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986

o    जल अधिनियम, 1974

o    वायु अधिनियम, 1981

o    जैव विविधता अधिनियम, 2002

3. राष्ट्रीय कार्यक्रम:

o    स्वच्छ भारत मिशन

o    नमामि गंगे

o    राष्ट्रीय हरित कोष (National Green Fund)

o    ऊर्जा संरक्षण योजना

4. स्थानीय भागीदारी:

o    ग्राम पंचायतों द्वारा जल प्रबंधन

o    स्कूलों में पर्यावरण शिक्षा

o    स्वयंसेवी संगठनों का योगदान


 

 

 

 

 

 

 


पर्यावरणीय प्रबंधन में आम नागरिक की भूमिका


 

1.  जल और ऊर्जा की बचत करें:

नल और लाइट को अनावश्यक रूप से चालू न छोड़ें।

2. प्लास्टिक का कम से कम उपयोग करें:

कपड़े के थैलों का प्रयोग करें।

3. पेड़ लगाएं और उनका संरक्षण करें।

4. कचरे को सही तरीके से निपटाएं।

5. स्थानीय संरक्षण कार्यों में भाग लें।


 

 

 

 

 

 

 


टिकाऊ विकास और पर्यावरणीय प्रबंधन


 

टिकाऊ विकास (Sustainable Development) का अर्थ है ऐसा विकास जो वर्तमान ज़रूरतों को पूरा करे बिना भविष्य की ज़रूरतों को खतरे में डाले। यह पर्यावरणीय प्रबंधन का मूल आधार है। अगर हम बिना सोचे संसाधनों का दोहन करते रहेंगे, तो विकास अल्पकालिक होगा और उसका अंत विनाश में होगा।


 

निष्कर्ष

पर्यावरणीय प्रबंधन आज की दुनिया की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग, प्रदूषण पर नियंत्रण, और आम जनता की भागीदारी ही इसका समाधान है। सरकार, उद्योग, वैज्ञानिक और आम नागरिक सभी को मिलकर काम करना होगा। पर्यावरण के साथ संतुलन बनाए रखकर ही हम एक सुरक्षित, स्वस्थ और समृद्ध भविष्य की कल्पना कर सकते हैं। यह समय सिर्फ नीतियाँ बनाने का नहीं, बल्कि उन्हें ज़मीन पर उतारने का है।


 

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